डॉ. मुरली के. दिवी दिवीज लैबोरेटरीज लिमिटेड के चेयरमैन
- कामयाबी का मंत्र
यदि अपने आप पर विश्वास है तो किसी से समझौता करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
जल्दी ही मार्केट में अलग पहचान बनायी
जन्म :- हैदराबाद (आंध्रप्रदेश)
वार्नर लैब:- शुरूआत
बिजनेस में टॉप पर पहुंचना
डॉ. मुरली के. दिवी, दिवीज लैबोरेटरीज लिमिटेड के चेयरमैन हैं। सन्
1984 में उन्होंने फार्मास्यूटिकल के क्षेत्र में अपना कदम रखा और देखते
• फ्यूचर प्लान
ही देखते उनका करोबार 1,000 करोड़ तक पहुंच गया। उन्हें कई सम्मान मिल चुके हैं। वाणिज्य मंत्रालय ने उन्हें ट्रेडिंग हाउस की संज्ञा दी है।
डॉ. मुरली के. दिवी ने कॉलेज ऑफ फार्मेसी, मनीपाल, कर्नाटक से फार्मास्यूटिकल केमिस्ट्री में पीजी किया। इसके बाद उन्होंने आंध्रप्रदेश की काकातिया यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की।
डॉ. मुरली के. दिवी ने अपने कैरियर की शुरूआत वार्नर लैब, हैदराबाद से की। इसके कुछ समय बाद ही वे अमेरिका चले गए। वहां फाइक केमिकल्स में प्रोडक्शन मैनेजर की नौकरी ज्वाइन की। वहां वाइस प्रेसीडेंट आर एंड डी बने। इसके बाद वे स्चुिल्किल कॉर्पोरेशन में टेक्निकल डायरेक्टर रहे।
से
डॉ. मुरली के. दिवी ने अमेरिका में रहकर बिजनेस से संबंधित बातों को अच्छे से सीखा। जब उन्हें पर्याप्त अनुभव हो गया तो वे अमेरिका से भारत लौट आए। यहां आंध्रप्रदेश में सहयोगियों के साथ दो कंपनियों चेमिनॉर केमिकल्स और उसकी सहयोगी ग्लोब ऑर्गेनिक्स के को-प्रमोटर बने।
डॉ. मुरली के. दिवी इतने से ही संतुष्ट नहीं थे। वे कुछ और करना चाहते थे। उनकी सोच उनके सहयोगियों की सोच से तालमेल नहीं खा रही थी। इसकी वजह से दोनों साझेदारों में मतभेद बढ़ने लगा। देखते ही देखते उनमें आपसी फुट पड़ गया। डॉ. मुरली के. दिवी ने चेमिनॉर केमिकल्स और उसकी सहयोगी ग्लोब ऑर्गेनिक्स का साथ छोड़ दिया और सन् 1990 में अपनी अलग कंपनी दिवीज रिसर्च सेंटर
शुरू की। डॉ. मुरली के. दिवी की सोच दवाओं के उत्पादन का नया तरीका विकसित करने पर था। वे दवाओं को तैयार कर भारतीय दवा निर्माताओं को बेचते थे। उन्होंने अनुभवी लोगों की बजाए ऑर्गेनिक
केमिस्ट्री के फ्रेश ग्रेजुएट्स को भर्ती किया। वे स्वयं उन्हें ट्रेनिंग देते थे। डॉ. मुरली के. दिवी ने जल्दी ही मार्केट में अपनी एक अलग पहचान बना ली। सन् 1994 में 71 करोड़ का निवेश कर उन्होंने फैक्ट्री भी स्थापित की। कंपनी का नाम भी बदलकर दिवीज लैबोरेटरीज कर दिया और बल्क ड्रग बनाने लगे। किस्मत ने उनका साथ दिया, क्योंकि इसी दौरान भारत ने डब्ल्यूटीओ पर भी हस्ताक्षर कर दिया।
डॉ. मुरली के. दिवी को इस बदले समीकरणों का सबसे ज्यादा फायदा हुआ। सन् 2003 में कंपनी शेयर बाजार में चली गई। 15 दिंसबर 2008 को कंपनी का मार्केट कैप 8,000 करोड़ रूपए था। वे पेनकिलर नैप्रोक्सेन के सबसे बड़े उत्पादक हैं। आज उनके साथ टॉप मल्टीनेशनल कंपनियां जुड़ी हुई हैं।
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