वक्फ संशोधन बिल को संसद की संयुक्त संसदीय समिति में भेज दिया गया है? और PM मोदी का ये बयान था ?

वक्फ संशोधन बिल को संसद की संयुक्त संसदीय समिति में भेज दिया गया है ! याद कीजिए जब हिंडौन वर्ग की रिपोर्ट आई थी और उसके बाद अदानी समूह को लेकर मीडिया में कई पर्दा फैंसी रिपोर्ट आई तब विपक्ष ने इस मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति से करने की पुरजोर मांग की धरना प्रदर्शन दिया, मगर सरकार ने इनकार कर दिया| मांग नहीं मानी वक्फ संशोधन बिल्कुल जे पी सी में भेज दिया गया है और इसके सदस्यों का ऐलान भी हो गया या समिति अगले सत्र तक अपनी रिपोर्ट देगी इस बिल का नाम है कि यूनाइटेड वक्फ एक्ट मैनेजमेंट एंपावरमेंट एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट एक्ट [1995] संक्षेप में इस उम्मीद कहा जा रहा है|वक्फ बोर्ड का कानून अब { उम्मीद } कहां जाएगा ! नाम इस तरह से रखा जा रहा है, किसे उम्मीद कहा जाए| शायद वक्फ खाने में एतराज वक्फ दिल एक बहुत व्यापक मुद्दा है! लेकिन लोकसभा में उठाए गए सवालों से कुछ बातों पर बातचीत हो सकती है | कितनी बार मंत्री जी ने सच्चर कमेटी का नाम लिया जस्टिस राजेंद्र सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का हवाला देकर वक्त बिल का अचित ठहराते रहे आपको याद है कि पिछले 10 साल में मोदी सरकार ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का इतने सम्मान से कब नाम लिया उसके कितने सुझावों पर अमल किया है!


सांसद भवन मे किरण रिजिजू का बयान:- उसके कितने सुझावों पर अमल किया है! 9th मार्च 2005 में गठन किया गया था, स्पेसिफिक मुसलमान के लिए गठन हुआ है. एनुअल इनकम जितना वक्फ वोट का प्रॉपर्टी है 4.9 लाख रजिस्टर्ड वक्फ प्रॉपर्टीज यह सिर्फ 163 करोड़ आमदनी जनरेट होता है, और इसको एफिशिएंट तरीके से मार्केट तरीके से जिस तरीके से मैनेज होना चाहिए| सारा वक्फ प्रॉपर्टी को अगर सही मायने में उसे समय उन्होंने कहा है 12000 करोड़ रूपया और मिलता है| और उसे समय जनरेट होना था |

वक्फ बिल को आप ईस पुराने नियमों को भी आप देख सकते है|



और कितना आमदनी है किरण रिजू जी ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का हवाला दिया यह बात बिल्कुल ठीक है कि सच्चर कमेटी ने कहा कि 4.9 लाख पंजीकृत संपत्तियां हैं उनसे जितनी आमदनी होनी चाहिए उतनी नहीं होती है वक्त बोर्ड में भ्रष्टाचार और घपले के भी मामले आते रहते हैं इससे भी इनकार नहीं करना चाहिए या ठीक है किसके दस्तावेजों का कंपलीट कारण होना चाहिए संपत्ति का पंजीकरण होना चाहिए लेकिन जो व्यापक मुद्दा बनता है उसे अनदेखा नहीं कर सकते वक्त बोर्ड में घपला है भ्रष्टाचार है इसे ठीक करना चाहिए मगर जो तरीका अपनाया जा रहा है क्या वह तरीका ठीक है हम यहां इन्हें सीमित मुद्दों की बात कर रहे हैं सरकार ने दलित दी कि वक्त के पास लाखों एकड़ की जमीन है तो फिर उसकी आमदनी उतनी क्यों नहीं हो रही है जितनी होनी चाहिए वक्त की जमीन पर केवल माफिया का कब्जा नहींसरकारों का भी है एक सरकार नहीं कई राज्य सरकारों का क्या इसके बारे में यह नया कानून कुछ कहता है केंद्र से लेकर राज्य सरकारों ने वह की जमीन पर अपने दफ्तर तक बना लिए वक्त की इजाजत के बिना उसे प्राइवेट पार्टी को लीज पर दिया कानून में कहा गया है और इस्लामी कानून भी यही कहता है कि आप जिस जमीन के मालिक नहीं है उसे जमीन को वक्त नहीं कर सकते ऐसे कितने लोगों ने किया होगा फिर वह की जमीन की मालिक सरकार जो बन जाती है यह किस कानून के तहत बन जाती सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का एक हिस्सा हम आपको पढ़कर सुनाना चाहते हैं रिपोर्ट में लिखा है कि वक्त संपत्तियों पर अतिक्रमण केवल निजी व्यक्तियों द्वारा नहीं किया जाता है बल्कि समिति ने यह भी देखा है कि देशभर में सरकार और उनके विभाग इन्हें अधिग्रहित कर लेते हैं अतिक्रमण के दो स्वरूप संपत्ति को बिना किसी किराए या किसी भी प्रकार का कोई पैसा दिए पूरा का पूरा हड़प लेना दूसरा अधिग्रहण करने वाला व्यक्ति बहुत ही मामूली किराया दे जिसमें दशकों से कोई बदलाव न हुआ हो निजी अधिग्रहण की संख्या बहुत अधिक है यह देश भर मेंदेखा गया है कि प्रादेशिक और सरकारी विभागों के रवैया के कारण उन कल्याणकारी उद्देश्यों का बड़े स्तर पर पतन हो रहा है जिनके लिए वस्तुओं का निर्माण किया गया था सच तो यह है कि सरकार द्वारा वक्त जमीनों का अधिग्रहण प्राधिकरणों के लिए नाश्ते शर्म की बात है बल्कि यह निजी अधिग्रहण करने वालों का साहस बढ़ा देती है और मुस्लिम समुदाय की स्थिति में सुधार और पुनर्निर्माण में रुकावट का काम करती है सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में लिखा है कि 1976 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सभी मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था कि वह की जमीन खाली कर दें या बाजार की दर से उन्हें किराया दें इसके बाद से किसी प्रधानमंत्री ने ऐसा नहीं किया मंत्री जी ने इसका जिक्र नहीं किया किरण रिजू ने की वक्त की संपत्ति पर सरकारों ने भी खूब कब्जा किया हैसरकारों ने राज्य वक्त बोर्ड के गठन की परवाह भी नहीं की ना उनकी इजाजत लेनी जरूरी समझी अगर सरकार की नियत में ईमानदारी वह बताती या ऐसा प्रावधान करती के वक्त की संपत्ति का इस्तेमाल सरकार अब नहीं करेगी और जिन मामलों में सरकार ने किया है उसे लौटा देगी रिसर्च के दौरान यह निकाल कर आया की अदालत से जीत जाने के बाद भी कुछ मामलों में वक्त की संपत्ति वापस नहीं की जाती है जबकि कुछ मामलों में की गई है या जो बताया जा रहा है कि वह बोर्ड मुकदमेबाजी में फंसा है तो उसका एक बड़ा कारण खुद सरकार भी एक और कारण है आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया असी जिसने कई जगहों पर संरक्षण के आधार पर मस्जिदों और दरगाहों की जमीनों का अधिग्रहण किया है इसे लेकर भी तमाम वक्त बोर्ड गए हैं और जाहिर है मुकदमों की संख्या इन वजहों से भी ज्यादा होती होगी|

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